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सोमवार, 5 जुलाई 2021

संधारित्र किसे कहते हैं सिद्धांत,प्रकार और उपयोग|capacitor in hindi

संधारित्र किसे कहते हैं सिद्धांत,प्रकार और उपयोग|capacitor in hindi

आज की इस पोस्ट में हम physics(भौतिक विज्ञान) के बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक संधारित्र(capacitor) के बारे में पढ़ने वाले हैं|

इसमें हम पढ़ेंगे संधारित्र क्या है? संधारित्र का सिद्धांत, प्रकार और उपयोग|

संधारित्र किसे कहते हैं(sandharitra Kise Kahate Hain):

संधारित्र एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा किसी चालक के आकार या आयतन में बिना परिवर्तन किये उसकी विद्युत धारिता बढ़ायी जा सकती है|

संधारित्र को capacitor या condenser भी कहा जाता है|

Capacitor की खोज का श्रेय Pieter van Musschenbroek  और Ewald Georg von Kleist को जाता है|

संधारित्र का सिद्धांत(sandharitra ka siddhant) :

संधारित्र किसे कहते हैं सिद्धांत,प्रकार और उपयोग|capacitor in hindi
Principle of capacitor

चित्र में A  एक पृथक्कृत चालक प्लेट है जिसे धन आवेश दिया गया है| अब यदि इस धन आवेशित चालक प्लेट A के समीप दूसरी अनावेशित चालक प्लेट B लाने पर प्रेरण द्वारा प्लेट B के निकटवर्ती तल पर ऋण आवेश तथा दूरवर्ती तल पर धन आवेश उत्पन्न हो जाता है|

प्लेट B  की बाहरी सतह का संबंध पृथ्वी से कर देने पर समस्त धन आवेश पृथ्वी में चला जाता है और प्लेट B  पर केवल ऋण आवेश शेष रह जाता है, जो प्लेट A  के विभव को कम कर देता है| अत: सूत्र  C=Q/V  के अनुसार चालक की विद्युत- धारिता बढ़ जाती है|

संधारित्र के प्रकार(types of capacitor):

(I) समांतर प्लेट संधारित्र(parallel plate capacitor) 

(II) गोलीय संधारित्र(spherical capacitor) 

(III) बेलनाकार संधारित्र(cylindrical capacitor) 

संधारित्र के उपयोग(sandharitra ke upyog):

1.आवेश और ऊर्जा को store  करने के लिए संधारित्र का उपयोग किया जाता है|

2.विद्युत फिल्टरों में संधारित्र का उपयोग किया जाता है|

3.विद्युत पंखे, टेलीविजन, कम्प्यूटर आदि सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में संधारित्र (capacitor) का उपयोग किया जाता है|

संधारित्र की धारिता किसे कहते हैं(dharita Kise Kahate Hain):

माना संधारित्र की प्लेट A को +Q  आवेश देने पर उसका विभव V1 तथा प्लेट B  में  -Q  आवेश प्रेरित होने के कारण उसका विभव V2 हो जाता है|

अत: प्लेट A  और  B के बीच विभवांतर = V1-V2

    संधारित्र की धारिता C = Q/ V1-V2

यदि V1-V2 = 1 हो, तो  C = Q

अतः संधारित्र की धारिता उस आवेश के आंकिक मान के बराबर होती है जो पृथक्कृत प्लेट को देने पर दोनों प्लेटों के मध्य उत्पन्न विभवांतर में इकाई  की वृद्धि कर दें|

संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक:

संधारित्र की धारिता निम्न कारकों पर निर्भर करती है-

1. प्लेटों के क्षेत्रफल पर- किसी संधारित्र की विद्युत-धारिता C  उसकी प्लेटों के क्षेत्रफल A के अनुक्रमानुपाती होती है|

        अर्थात्  C ∝ A

प्लेटों का क्षेत्रफल बढ़ाने पर संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है|

2. प्लेटों के बीच की दूरी पर- किसी संधारित्र की विद्युत-धारिता C  उनकी प्लेटों के बीच की दूरी d  के व्युत्क्रमानुपाती होती है|

      अर्थात्  C ∝ 1/d

प्लेटों के बीच की दूरी कम करने पर संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है|

3. प्लेटों के बीच के माध्यम पर- संधारित्र की प्लेटों के बीच अधिक परावैद्युतांक का माध्यम रखने पर उसकी धारिता बढ़ जाती है|

धारिता का मात्रक क्या है(dharita ka matrak kya hai) :

                         C = Q/V

धारिता का मात्रक=आवेश का मात्रक/विभव का मात्रक

                        = कूलॉम/वोल्ट या फैरड

S. I पद्धति में धारिता का मात्रक फैरड है|

C. G. S  पद्धति में धारिता का मात्रक स्थैत- फैरड है|

धारिता का विमीय सूत्र क्या है(dharita ka vimiy sutra kya hai) :

                          C= Q/ V

धारिता का विमीय सूत्र= आवेश का विमीय सूत्र/ विभव का विमीय सूत्र

                     = AT / ML²T-³A-¹

                     = [ M-¹L-²T⁴A²]

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