ओर्स्टेड का प्रयोग क्या है? इसके निष्कर्ष|experiment of oersted in hindi
आज के इस पोस्ट में हम physics(भौतिक विज्ञान) के महत्वपूर्ण टॉपिक ओर्स्टेड का प्रयोग(oersted experiment) पढ़ने वाले हैं| इसमें हम पढ़ेंगे ओर्स्टेड का प्रयोग क्या है और उसके निष्कर्ष|
ओर्स्टेड का प्रयोग क्या है(orsted ka prayog)
डेनमार्क के प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री हैंस क्रिश्चियन ओर्स्टेड ने सन् 1820 में प्रयोग द्वारा पता लगाया कि जब किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है और उसके नीचे चुंबकीय सुई रखी जाती है तो चुंबकीय सुई विक्षेपित हो जाती है| विद्युत धारा की प्रबलता बढ़ाने पर चुंबकीय सुई के विक्षेप का मान भी बढ़ जाता है तथा विद्युत धारा की दिशा बदलने पर विक्षेप की दिशा भी बदल जाती है|
चूंकि चुंबकीय सुई चुंबकीय क्षेत्र में ही विक्षेपित होती है, अतः उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि-“ जब किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों और चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है|”
oersted experiment image |
ओर्स्टेड के प्रयोग के निष्कर्ष:
ओर्स्टेड ने अपने इस प्रयोग में निम्न निष्कर्ष प्राप्त किये-
1. जब तार को चुंबकीय सुई के ऊपर रखा जाता है एवं विद्युत धारा दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवाहित की जाती है तब चुंबकीय सुई का उत्तरी ध्रुव पश्चिम की दिशा में विक्षेपित हो जाता है| चित्र (a)
2. यदि विद्युत धारा की दिशा को परिवर्तित कर दिया जाए अर्थात धारा उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित की जाए तब चुंबकीय सुई का उत्तरी ध्रुव पूर्व की ओर विक्षेपित हो जाता है| चित्र (b)
3. यदि धारावाही चालक तार को चुंबकीय सुई के नीचे रखा जाए तब चुंबकीय सुई के विक्षेप की दिशा पुनः परिवर्तित हो जाती है|
4. यदि धारावाही तार में विद्युत धारा के प्रवाह को बंद कर दिया जाए तब चुंबकीय सुई पुनः अपनी प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाती है|
5. चुंबकीय सुई तभी विक्षेपित होती है जब तार में विद्युत धारा प्रवाहित हो रही हो|
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